भाई की पुत्रवधू पटा कर चुदाई – Part 2

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सही मौका देख कर मैं भी निशा के पास पहुंच गया. शायद उसको भी पूरा यकीन था कि मैं जरूर आऊंगा. उसके करीब काफी जगह थी. मैं जाकर उसकी कमर के पास बैठ गया. मैंने देखा कि उसकी साड़ी घुटने तक ऊपर उठ गयी थी.
उसकी साड़ी को मैंने और भी ज्यादा ऊपर तक उठा दिया. नीचे से निशा ने कुछ भी नहीं पहना हुआ था. मैंने साड़ी को पूरी ऊपर कर दिया और निशा की नंगी चूत मेरी आंखों के सामने थी. अपनी आंखों के सामने उसकी चूत को देख कर मुझे पागलपन चढ़ने लगा.
मुझे डर भी लग रहा था क्योंकि बाकी लोग भी बगल में ही सोये हुए थे. मगर रोमांच इतना था कि हिम्मत भी साथ साथ बढ़ रही थी. एक बात मैंने देखी कि निशा ने अपनी चूत को साफ किया हुआ था. गांव में रहते हुए भी वो शहरी लड़की की तरह एकदम टिप-टॉप रहती थी.
धीरे से मैंने अपना हाथ उसकी चूत पर रख दिया. उसने थोड़ी सी हलचल की और फिर शांत हो गयी. मैंने धीरे से उसकी चूत की पंखुड़ियों को खोल कर देखा और फिर फैला दिया.
मैंने एक उंगली उसकी चूत के दाने पर रख दी और उसको सहलाने लगा. निशा के पूरे बदन में हरकत होने लगी थी लेकिन वो अभी भी सोने का नाटक कर रही थी. मुझे भी ये खेल खेलने में काफी मजा आ रहा था.
निशा बहू की चूत का दाना सहलाते हुए मैंने एक उंगली उसकी चूत के अंदर घुसा दी. उसके मुंह से आह्ह निकल गयी. मैंने तुरंत अपने हाथ से उसका मुंह बंद किया. एक बार तो मेरी भी जान निकल गयी क्योंकि बाकी लोगों के उठने का डर था.
कुछ पल का विराम देकर मैंने उसके मुंह पर हाथ रखे हुए उसकी चूत में उंगली को चलाना चालू रखा. उसे भी मजा आ रहा था. अब उसने अपनी आंखें खोल ली थीं. वो मदहोशी में मेरी ओर देख रही थी. उसकी आंखों में सेक्स का एक नशा सा भर आया था.
मैं उसकी चूत को अपनी उंगली से जोर जोर से रगड़ने लगा. वो अपनी चूत को ऊपर करने लगी. मैं समझ गया कि अब बात निशा के काबू से बाहर जा रही है. इतने में ही वो उठने लगी.
उसने मेरा हाथ पकड़ा और मेरे होंठों पर उंगली से मुझे चुप रख कर कमरे में अंदर ले जाने लगी. वो आगे आगे थी और मैं पीछे पीछे. हम अंदर वाले कमरे में चले गये. सब लोग बाहर सो रहे थे.
जाते ही निशा ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया और बेड पर मेरे साथ लेटते हुए नीचे आ गयी. मैं भी उसके ऊपर लेट गया. उसने मेरे होंठों को जोर जोर से चूसना शुरू कर दिया और मैं भी उसका साथ देने लगा. दोनों एक दूसरे के मुंह से लार को खींचने लगे.
फिर मैंने इसी दौरान उसके ब्लाउज को खोलना शुरू कर दिया. उससे लिपटते चूमते हुए मैंने उसके ब्लाउज के हुक खोल डाले. उसकी चूचियां नंगी हो गयीं. एकदम दूध के जैसी सफेद चूचियां थी उसकी. मैंने बिना देर किये उनको मुंह में भर लिया और जोर जोर से पीने लगा.
निशा सिसकारने लगी और मेरे सिर को अपनी छाती की ओर दबाने लगी. मैं उसके निप्पलों को दांतों से काटने लगा. दो मिनट तक उसके बूब्स को चूसने और पीने के बाद मैंने उसके पेटीकोट भी खोल दिया. मैंने बहू को पूरी नंगी कर दिया.
उसके बाद मैंने भी जल्दी से अपने कपड़े निकाले और नंगा हो गया. मैंने बहू के दोनों पैरों को खोल दिया और उनके बीच में चला गया. मैंने बहू की चूत पर मुंह लगाया और जोर जोर से चूसने लगा.
वो एकदम से सिहर कर सिमटने लगी. अपनी जांघों को भींचने की कोशिश करने लगी. मगर मैंने उसकी जांघों को दोनों हाथों से खोला हुआ था.
मैं जोर जोर से बहू की चूत में मुंह देकर चूस रहा था. फिर उसने अपनी जांघें खुद ही ढीली छोड़ दीं और चूत चुसवाने का मजा लेने लगी. मैंने उसकी चूचियों को पकड़ लिया और दोनों हाथों से दोनों चूचियों को दबाने लगा. वो मदहोश होने लगी.
अब मैंने अपने लंड को उसकी चूत पर लगाया और रगड़ने लगा. वो सिसकारने लगी. मगर मंद मंद आवाजें कर रही थी. मैं उसकी चूत के दाने पर अपने लंड को रगड़ रहा था.
उसकी चूत एकदम से चिकनी हो गयी थी. उसकी चूत से निकला कामरस और मेरे लंड से निकला कामरस दोनों के ही मिल जाने से उसकी चूत काफी गीली लग रही थी और एकदम से फिसलन भरी हो गयी थी.
जब उससे रहा न गया तो बोली- जल्दी करो, कोई आ जायेगा.
निशा अब मेरा लंड लेने के लिए तड़प गयी थी. लंड को बहू की चूत के छेद पर सेट करके मैंने एक धक्का दिया तो आधा लंड अंदर चला गया.
शादीशुदा होने के बावजूद भी निशा बहू की चूत ऐसी टाइट लग रही थी जैसे कुंवारी चूत ही हो. उसके पति को शायद ज्यादा समय नहीं मिलता था उसकी चूत को चोदने के लिए, इसी वजह से वो इतनी जल्दी अपनी चूत मुझसे चुदवाने के लिए तैयार हो गयी थी.
मैंने दूसरा झटका दिया तो उसके मुंह से आह्ह निकल गयी और मेरा पूरा लंड उसकी चूत में घुस गया.
वो धीरे से कान में कराहते हुए बोली- आह्ह, दर्द हो रहा है, धीरे करो.
मैंने आहिस्ता आहिस्ता से निशा बहू की चूत को चोदना शुरू किया.
फिर मैंने अपनी चोदने की गति बढ़ा दी. वो भी नीचे से सहयोग देने लगी. जब बहू की चूत में मेरे लंड के धक्के लग रहे थे तो उसकी गोल गोल बॉल के जैसी सफेद चूचियां आगे पीछे डोल रही थीं. उसकी चूचियों पर हल्के भूरे रंग के निप्पल एकदम से तने हुए थे.
मैं जोर जोर उसको चोदने लगा. उसकी आंखें बंद होने लगी थीं और मैं भी जैसे सातवें आसमान पर था. 15 मिनट तक निशा बहू की चूत की चुदाई चली और फिर अचानक से थरथराती हुई झड़ गयी. मगर मैं अभी भी उसी रफ्तार से उसकी चूत को चोदता रहा.
फिर उसके पांच मिनट के बाद मेरे लंड से भी वीर्य निकल पड़ा और मैंने सारा माल उसकी चूत में उगल दिया. मैं भी हांफता हुआ उसके ऊपर गिर गया. मैं बुरी तरीके से हांफ रहा था और निशा की सांसें भी सामान्य नहीं हो पाई थी.
थोड़ा शांत होने पर मैं उठा और बाहर का जायजा लेने के लिए गया. मैंने देखा कि सब लोग अभी भी घोड़े बेच कर सो रहे थे. वापस आकर मैंने फिर से उसकी चूत को कुरेदना शुरू कर दिया. फिर थोड़ी देर के बाद वो भी लय में आ गयी.
अबकी बार मैंने निशा को घोड़ी बना लिया. मैंने अपना औजार पीछे से उसकी चूत में डाला और चोदने लगा. वो भी मेरा साथ देने लगी. आधे घंटे तक मैंने दूसरे राउंड की चुदाई की. उसकी चूत चुद चुद कर लाल हो गयी थी. फिर आखिरकार मैंने फिर से एक बार अपना माल उसकी चूत में छोड़ा. इस दौरान वो तीन बार झड़ गयी थी.
फिर मैंने बाथरूम में जाकर खुद को साफ किया. उसके बाद निशा भी वहीं जाकर लेट गयी जहां पहले लेटी हुई थी. फिर मैं भी आराम से आकर सो गया.
सुबह फिर मैं देर से उठा. उस वक्त घर के सभी लोग अपने काम में लगे हुए थे.
मैं निशा को ढूंढ रहा था. वो कहीं नजर नहीं आ रही थी.
फिर दो मिनट बाद मैंने उसको किचन में खड़े हुए देखा. मुझे देखते ही वो शरमाने लगी.
रंजना भी उसके बगल में ही काम कर रही थी. मुझे देख कर रंजना ने कहा कि इनको नाश्ता दे दो.
उसके बाद मैं अपने रूम में गया और फ्रेश हो गया. थोड़ी देर के बाद निशा भी नाश्ता लेकर आ गयी.
चाय नाश्ता मुझे पकड़ाते हुए बोली- कल की रात मेरी जिन्दगी की बहुत ही खूबसूरत रात थी.
मैंने उसको धन्यवाद कहा.
वो बोली- नहीं, ये तो मेरा सौभाग्य था.
मैं बोला- अब तुम्हारी चूत के झरने का पानी पीने के लिए मुझे दोबारा कब मिलेगा?
निशा बोली- अब तो आप इसके मालिक हो गये. जब आपके दिल किया करे आप मिलने आ जाइयेगा. जब भी कहोगे इसका पानी आपको मिल जायेगा. मगर केवल आप और मैं. इसके अलावा कोई और नहीं.
इस तरह से मैं पांच दिन वहां रहा और मैंने निशा बहू की चूत कई बार बजाई. उसके बाद मैं अपने घर आ गया. मगर जब भी मैं जाता हूं तो वो मेरी राह देख रही होती है. निशा को जैसे अपने अकेलेपन का सहारा मिल गया.
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