वासना अंधी होती है-2

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मेरी बीवी की सहेली सुंदर सेक्सी नहीं थी पर वो मुझ पर मरती थी. मैंने भी सोचा कि साली अगर चूत दे रही है तो मार लो. एक दिन मैं उसके घर चला गया. वहां पर क्या हुआ?
साली की चुदाई कहानी का पिछला भाग: वासना अंधी होती है-1
अगले दिन ठीक 10 बजे मैं ऑफिस से किसी काम का बहाना करके निकला और उसके घर गया। मैंने घण्टी बजाई तो उसने बड़ी खुशी से मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया।
ड्राइंगरूम में बैठा कर उसने मुझे पानी ला कर दिया।
पानी की गिलास पकड़ते हुये मैंने उसकी कमीज़ के गले से उसके दोनों साँवले मम्मों को देखा।
उसने ताड़ लिया कि मैं उसके मम्में देख रहा हूँ। उसने भी छिपाने की कोई कोशिश नहीं करी।
पानी पीकर मैं उससे इधर उधर की बातें करने लगा। मगर उसके व्यवहार से लग रहा था, जैसे वो चाहती हो कि ‘यार बातें छोड़ो और मुझे पकड़ लो, साली की चुदाई करने आए हो वो करो।’
थोड़ी देर इधर उधर की बातें करने के बाद उसने चाय पूछी।
मैंने हाँ कही तो वो चाय बनाने किचन में चली गई।
अब मैंने सोचा कि ‘यार मैं खामख्वाह साली की चुदाई में देर कर रहा हूँ, अब मेरे पास सिर्फ यही रास्ता बचा है कि मैं हिम्मत दिखाऊँ और इसे पकड़ लूँ।’
वैसे भी इसके मम्में मैं दबा चुका हूँ तो अगर फिर दबा देता हूँ, तो कौन सा इसने बुरा मानना है।
तो मैं उठ कर किचन में गया। पहले उसके पीछे से गुज़र कर खिड़की तक गया, यूं ही बाहर को देखा और फिर वापिस आया।
और जब वापिस आते हुये मैं उसके पीछे से गुज़रा तो मैंने उसे अपनी आगोश में ले लिया।
उसने सिर्फ ‘अरे’ कहा।
इस ‘अरे’ में भी खुशी और आश्चर्य का मिला जुला प्रतिक्रम था।
मैंने उसको कस के अपने सीने से लगाया तो उसने अपना सर मेरे कंधे पर डाल दिया, गैस को धीमा करके अपनी दोनों बाजुएँ ऊपर हवा में उठाई और पीछे मेरे गले में डाल दी।
मैंने अपने दोनों हाथ उसके कमीज़ के अंदर डाले और ऊपर लेजा कर उसके दोनों मम्में पकड़ लिए।
वो थोड़ शरमाई, मुस्कुराई, हंसी।
मगर ये हंसी, शरारत वाली थी।
मैं अपने दोनों हाथ घुमा कर पीछे लाया और उसकी ब्रा का हुक खोल दिया. फिर अपने हाथ आगे ले कर गया.
और इस बार उसकी ब्रा ऊपर को उठा कर उसके दोनों मम्में ब्रा की कैद से आज़ाद कर दिये और अपने हाथों में पकड़ लिए।
और जब दबाये ‘आह .’ साली पराई औरत के जिस्म में एक अलग ही कशिश होती है।
मैंने उसके दोनों मम्मों को सहलाया तो उसने अपना सर मेरी ओर घुमाया. मैं थोड़ा नीचे को झुका और फिर हमारे होंठ मिले। दोनों के होंठ ऐसे जुड़े के अलग होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मैं ये देख रहा था कि मुझसे ज़्यादा वो इस चुंबन का आनंद ले रही थी।
मैंने उसके एक मम्मे को छोड़ा और अपने हाथ नीचे ले जाकर उसकी सलवार में डाल दिया। अंदर मैदान बिल्कुल साफ था, चिकनी चूत को छूआ तो वो थोड़ा सा चिहुंकी।
‘आह .’ हल्की सी सिसकारी उसके मुंह से निकली।
मैंने अपने हाथ से उसकी चूत का दना मसला तो उसने अपनी जांघें भींच ली. सिर्फ इतनी सी ही देर में उसकी चूत पानी पानी हो गई।
मेरा भी लंड टनटना गया।
उसने गैस बंद कर दी, बोली- यहाँ मज़ा नहीं आ रहा, चलो बेडरूम में चलते हैं।
मैंने कहा- नहीं यार, अभी नहीं, अभी तुमने 11 बजे दुकान पर जाना है। इतनी जल्दी मुझे मज़ा नहीं आता। मुझे अच्छा लगता है, जब खुला समय हो, और बिल्कुल एकांत हो। ताकि खुल कर प्यार करने, साली की चुदाई का मज़ा आ सके। इस भागदौड़ में साला मज़ा नहीं आता।
वो बोली- तो फिर जल्दी कोई प्रोग्राम बनाओ आप। अब मुझसे सब्र करना मुश्किल हो रहा है।
मैंने कहा- सब्र तो मुझसे भी नहीं हो रहा। खैर देखता हूँ, बनाता हूँ कोई प्रोग्राम। मगर मेरी एक इच्छा है, मैं तुम्हें एक बार बिल्कुल नंगी देखना चाहता हूँ।
वो बोली- अब तो मैं आपकी हो चुकी हूँ, खुद ही देख लो।
मैंने अपने हाथों से उसकी कमीज़, ब्रा सलवार सब उतार कर उसे किचन में ही नंगी कर दिया। बेशक वो देखने में कोई हूर परी नहीं थी, मगर उसे नंगी देख कर मेरा दिल मचल गया। मेरा मन तो कर रहा था कि अभी इसे चोद डालूँ।
मगर अभी वक्त नहीं था तो मैंने सिर्फ उसके नंगे जिस्म को थोड़ा सा सहलाया और फिर वापिस अपने ऑफिस आ गया।
ऑफिस आकर मैंने अपने एक दोस्त से बात करी कि होटल के एक कमरे का इंतजाम करके दे, एक पर्सनल माशूक है, उसको चोदना है।
उसने कहा- कोई दिक्कत नहीं, अपनी माशूक से कहो, जब वो फ्री हो, तब बता दे, होटल का कमरा तो मैं मौके पर ही दिलवा दूँगा।
शाम को घर गया तो बीवी बोली कि उसकी छोटी भाभी के घर बेटा हुआ है, तो उसे अपने मायके जाना है।
मेरे मन में एकदम से विचार आया और मैंने अपनी ऑफिस का ज़रूरी काम बता कर उसको बोला- तुम ही चली जाओ और साथ में बेटे को भी ले जाओ। मैं एक दो दिन बाद आ जाऊंगा।
सुबह 6 बजे पत्नी और बेटे को मैंने दिल्ली की बस बैठा दिया और खुद घर आकर 9 बजने का इंतज़ार करने लगा।
9 बजे पहले मैंने अपने दफ्तर फोन करके बोला- आज मैं नहीं आ सकता.
और फिर सलोनी को फोन लगाया।
उसने फोन उठाते ही पूछा- हां जी, गई दीदी?
मैंने कहा- तुम्हें पता है?
वो बोली- हाँ कल रात बताया दीदी ने!
मैंने पूछा- तो क्या प्रोग्राम है, आज मिलें फिर?
वो बोली- कब और कहाँ?
मैंने कहा- और कहाँ? मेरे घर . तुम दुकान खोलो और 11 बजे मैं तुम्हें पीछे वाली गली में लेने आऊँगा. ठीक है?
वो मान गई।

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