हैलो… मेरा नाम माधवी है, मेरे घर के पास में एक फैमिली किराए से आकर रहने लगी. उनकी अभी अभी शादी हो कर आई थी, उनके पति ट्रक चलाते थे. वो हफ्ते पन्द्रह दिन में एक बार ही आ पाते थे. उनकी नई नई शादी हुई थी. भैया जी ने नए घर में शिफ्ट होते समय पूरा एक माह घर में बिताया था और आज काम पर निकल पड़े.
उनके जाने के बाद भाभी हफ्ते भर में ही मुझसे अच्छी बातें करने लगीं. उनके साथ घर जैसा माहौल बन गया. मां भी मुझे उनके साथ घूमने देतीं. मैं स्कूल से आकर उनके साथ काफी घूमती. वो हाई स्कूल की पढ़ाई में मेरी मदद करतीं. इस तरह हम सहेलियां बन गई और अपनी बातें शेयर करने लगी.
अब पढ़ाई के अलावा भी काफी बातों को लेकर उन्होंने मुझे बताना शुरू कर दिया. ये बातें कुछ एडल्ट टाइप की होती थीं. पहले तो मुझे गंदा लगता था, बाद में मुझे वही बातें काफी अच्छी लगने लगीं और हम दोनों खुल कर बातें करने लगी.
इस तरह की बातों को करने में हम दोनों खूब मजा लेती. उनके पास भैया का दिया बड़ा सा मोबाइल था. उसमें कुछ एडल्ट मूवी डाउनलोड थीं. जब मैं उनके पास नहीं रहती, तब वो उन मूवीज को देखा करती थीं. ये बात मुझे एक दिन मालूम चल गई थी.
हुआ यूं कि एक दिन जब मैं उनके घर चुपके से गयी तो मैंने देखा कि वो कुर्सी पर टांगें खोल कर बैठ कर मूवी देखने में मस्त थीं. मैं उनके पास चुपके से पीछे खड़ी हो गई. मैंने भी जैसे ही चुदाई की मूवी को देखा तो झट से अपनी आंखें बंद कर लीं. उसमें एक लड़की को दो काले आदमी चोद रहे थे. फिर मैं आंखें खोल देखने लगी. एक बड़ा सा लंड उस लड़की की चुत के अन्दर बाहर हो रहा था.
उस समय भाभी का हाथ उनकी सलवार के अन्दर चुत सहलाने में लगा हुआ था. वो देख भी नहीं रही थीं कि मैं पीछे खड़ी हूँ. काफी देर तक उन्होंने मूवी बदल बदल कर देखीं और अंत में अपने हाथों से ही झड़ना शुरू हो गईं.
झड़ने के बाद जैसे ही उन्होंने अपने सर को ऊपर को किया तो मुझे खड़ा पाया, उनका मोबाईल नीचे गिर गया.
भाभी हकलाते हुए कहने लगीं- तू तू माधवी… तू कब आयी… बताना तो था.
मैं- मैं अभी अभी आयी… और क्या भाभी गंदी मूवी देखती हो?
भाभी- नहीं रे… आज मन कर रहा था तेरे भैया तो है नहीं… इसीलिए मूवी देख रही थी. तू चुपचाप पढ़ाई में ध्यान दे, नहीं तो साली फेल हो जाएगी… और मेरे को बदनाम कर देगी.
फिर वो उठ कर मेरे साथ अपने कमरे में चली आईं और मुझसे बातें करने लगीं.
भाभी- चल बाजार से मुझे कुछ सामान खरीदना है… चल चलती हैं.
मैं- ठीक है भाभी… मैं अभी तैयार हो कर आती हूँ.
भाभी- ऐसे ही चल ना… शादी अटेंड थोड़ी ना करना है.
मैं- मगर ये कपड़े ठीक नहीं है.
भाभी- चल मेरा सलवार सूट पहन ले.
मैं- मगर ये तो मुझे तंग होगा.
भाभी- पहन भी ले यार.
मैंने भाभी के एक सलवार सूट को पहन लिया. वो इतना टाईट था कि पूरे बदन में चिपक गया. मेरे दोनों मम्मे अलग अलग टाईट खड़े दिखने लगे.
वो मुझे देखते ही बोलीं- ओ माई गॉड… कितनी सेक्सी लग रही है माधवी.
मैं शर्मा गई और उसे उतारने लगी.
भाभी- नहीं यार मत उतार… चल देखो कितना तना हुआ है… अलग अलग ढिबरी दिख रही हैं.
मैं- छी: नहीं पहनती.
भाभी- चल ना… नखरे मत कर.
भाभी ने मुझे एक चुन्नी दे दी. वो भी पतली सी थी.
हम दोनों घर से बाहर आ गए… अभी निकले ही थे कि घर से दूर लाला ने दुकान से आवाज लगाई- माधवी कहां जा रही है… सज धज के… वो भी भाभी के साथ?
मैं- बाजार जा रही थी.
लाला ने मेरे मम्मों को घूरते हुए कहा- अच्छा अच्छा.
लाला बड़ा मादरचोद आदमी था, वैसे तो मैं उसे जब तब घिसती रहती थी… लेकिन वो थुलथुल टाइप का था इसलिए मुझे मालूम था कि ये मेरे मतलब का नहीं है.
लाला की तरफ हंस कर देखती हुई हम दोनों निकल पड़ी. आगे एक रिक्शे में बैठ कर बाजार को चल पड़ी. रिक्शे वाला बनियान और हाफ पेंट में था. भाभी उसे घ्यान से देख रही थीं.
उसका बदन कितना कसा हुआ था… काला सा हट्टा कट्टा जवान था. वो हमसे बातें करने लगा.
बातों ही बातों में उसने कहा- मैं भी आपके घर के थोड़ी दूर में रहता हूं.
भाभी ने कहा- परिवार?
वो बोला- वो तो सब गांव में हैं.
भाभी- तुम अकेले हो?
“नहीं मेरा भाई है… वो रात को रिक्शा चलाता है और मैं दिन में.”
भाभी- अच्छा.
भाभी ने धीरे से मेरे को देखने बोला.
मैं- क्या?
भाभी ने इशारे में दिखाया, उसकी पेंट की पीछे से सिलाई निकली हुई थी और अन्दर उसने कुछ पहना नहीं था. जब वो पैडल मारता तो उसका पीछे का अंग दिख रहा था.
मैं- भाभी तुम भी ना…!
भाभी हंस दीं.
कुछ देर में हम बाजार आ गई. भाभी ने जब उसे आगे से देखा तो बस देखती रह गईं. मैं उनकी नजरों को देख रही थी मानो भाभी को कोई माल मिल गया हो.
भाभी ने पचास का नोट निकाला और कहा- रूको… हम दोनों को वापस भी छोड़ देना.
भाभी नोट देते समय उसके हाथ को छूने लगीं. वो भी खुश हो गया और थोड़ी देर में हम वापस उसी रिक्शे से आने लगे. वो मुड़ कर हमसे बातें करने लगा.
घर पहुंचते ही भाभी ने उससे कहा- ये बैग ऊपर छोड़ दो प्लीज़.
वो- हां क्यों नहीं.
वो बैग ले कर चलने लगा.
भाभी- माधवी तू घर जा… तेरी मम्मी ढूंढ रही होंगी.
मैं- जी जी भाभी.
मैं घर के लिए वापस आने लगी. आधे रास्ते में जब याद आया कि भाभी का सूट देना है तो वापस उनके घर चली गई. मैंने देखा कि रिक्शा वहीं किनारे में खड़ा था. मैं ऊपर चली गई, दरवाजा उड़का हुआ था. मैंने जैसे ही थोड़ा सा धक्का लगाया तो अन्दर का नजारा देख कांप उठी. भाभी और वो दोनों ही बिना कपड़े के एक दूसरे से लिपटे हुए थे. भाभी अपना हाथ उसकी गांड पर रख उसे अपने पास खींच रही थीं और वो धीरे धीरे आगे पीछे होकर धक्के मारने में व्यस्त था. जितना वो काला और हट्टा कट्टा जवान था… भाभी उतनी ही गोरी और नाजुक देह की थीं. उसके हर धक्के का जवाब भी भाभी अपनी गांड उठा कर पूरी दम से लगा रही थीं. भाभी का कद छोटा होने से उसके सीने तक ही भाभी का मुँह आ रहा था. इसी लिए वो शायद मुझे देख नहीं पाईं.
फिर कुछ ही पल में उसने भाभी को गोदी में ले लिया और वहीं जमीन में लेटा कर उनकी चुदाई करने लगा. उसका मोटा लंड बार बार भाभी की चूत में अन्दर बाहर हो रहा था. मैं ये सब देख कर हैरान रह गई. मेरी चुत भी अब गीली हो चली थी. भाभी की चुदाई पूरी देखी और उनके उठने के पहले मैं नीचे आ गई. वहीं रिक्शे से दूर खड़ी होकर उनके नीचे आने का इंतजार करने लगी.
थोड़ी देर बाद भाभी ने दरवाजा खोला वो पूरी पसीने से तर थीं. उनके बाल बिखरे हुए थे. ऐसा लग रहा था कि साले ने भाभी को जम कर चोदा था. भाभी की चाल लड़खड़ा रही थी.
भाभी ने उस रिक्शे वाले से कहा- आ जाया करो.
वो वापस आने की कह कर चल दिया.
मैं रिक्शे से दूर थी, वो मुझे नहीं देख सका और रिक्शा लेकर आगे बढ़ गया.
उसके जाने के बाद मैंने आवाज लगाई- भाभी.
भाभी- आ जा माधवी अन्दर…
मैंने अन्दर आकर देखा तो सब कुछ पहले जैसे था, ऐसा नहीं लग रहा था कि यहां कोई ऐश किया गया हो.
मैं- वो आपका सूट पहना था, उसे लौटाने आई थी.
भाभी- इतनी जल्दी क्या थी. कल दे दे देती.
मैंने- नहीं बाबा… मां देखती तो गाली देती, इसीलिए तुरंत देने वापस आ गई.
भाभी- ठीक है.
मैंने कपड़े निकाल कर अपने कपड़े पहने और उन्हें ठीक करके दे दिए.
भाभी का चेहरा खुशी से भरा हुआ था… उनकी नजरें पूरी तृप्त हुई दिख रही थीं.
तभी मैं बोलीं- बड़ी खुश हो भाभी क्या हुआ… कहीं वो…?
“क्या वो… कौन?”
मैं- रिक्शा वाला?
वो घबरा गईं- कौन कौन छोड़ो ना.
मैं- भाभी मेरे से क्या छुपाना… मैं कोई परायी थोड़ी ना हूं… जो सब को बता दूंगी.
फिर वो टूट गईं- हां रे… तू तो अपनी है मैं तुझसे कुछ नहीं छुपाऊँगी.
मैं- मैं सब देख चुकी हूं.
भाभी- क्या सच?
“हां…”
भाभी- साली तू तो छुपी रूस्तम है. क्या क्या देखा?
मैं- कितने प्यार से चोद रहा था आपको… और आप भी उसका साथ दे रही थीं.
भाभी- हां रे पहली बार तो काले लंड से चुदने का मौका मिला… पूरे नीग्रो जैसा सामान था साले का… लंबा और काफी बड़ा… जब वो अन्दर डाल रहा था तो पूरा बदन करंट मारने लगा था. आज पहली बार जवान लंड से तृप्त हुई हूं.
मैं- तो भैया?
भाभी- वो कहां… बस अपना काम निकालते हैं और बंद कर लेते हैं. ये सब मजा कहां मिलता है.
मैं- भाभी बताया नहीं कभी आपने.
भाभी- वो ये बात है… जब से शादी से आयी हूं, तेरे भैया ने एक बार भी जम कर नहीं चोदा.
मैं- भाभी मजा आता होगा ना?
भाभी- क्यों तुझे भी कराना है?
मैं- नहीं बाबा बस ऐसे ही…
भाभी- मन में तो लड्डू फूट रहे हैं… बोल भी दे माधवी.
मैं- तुम भी ना.
भाभी- अच्छा बता कभी लंड अन्दर लिया है?
मैं- ना बा ना… कभी नहीं.