भाई की पुत्रवधू पटा कर चुदाई

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मैं अपने गांव में भाई के पास गया. वहां मेरा ध्यान मेरे भतीजे की जवान बीवी की ओर गया. उसकी नजर भी वासना से भरी लगती थी. ससुर बहू सेक्स की इस स्टोरी का मजा लें.
नमस्कार दोस्तो, मैं विशू मेरे जीवन की ससुर बहू सेक्स की सत्य घटना बताने जा रहा हूं.
बात ज्यादा पुरानी नहीं है. मई का महीना था. मैं और मेरा परिवार गांव में गये हुए थे.
हमारे गांव में हमारा पुरखों का मकान है. मेरे भाई का परिवार वहीं गांव में ही रहता है. उसकी बीवी का नाम रंजना है.
मेरे भाई के दो बेटे हैं. छोटे वाला शहर में अपनी बीवी के साथ रहता है क्योंकि उसकी नौकरी वहीं है जबकि बड़े वाला बाहर जॉब करता है. वो महीने दो महीने में मुश्किल से एक बार घर आता है. रंजना की बड़ी पुत्रवधू का नाम निशा है. ये कहानी निशा बहू और मेरे बीच के सेक्स के रिश्ते की है.
उस दिन जब निशा बहू नहा के बाहर आई तो उसी समय मैं अंदर आया. मुझे देख कर वह शरमा गई और पर्दे के पीछे छिप गई, परंतु छिपने के पहले उसके गदराये बदन का दर्शन मुझे हो गया. उसका शरीर सोने जैसा चमक रहा था, जो मेरी आंखों में समा गया.
मेरी नजर बहू के शरीर को देखने के लिए लालायित हो गयी. उसकी चूची मेरी आंखों से छुप न सकीं. मेरा मन डोल गया था उसको देख कर। तन बदन में आग लगा दी उसने. अब आंखें उसके जिस्म के दीदार के लिये मचल गयी थीं जिनमें निशा के प्रति वासना ही वासना थी.
उस दिन के बाद से मैं उसको पटाने में लग गया. मैं निशा के आगे पीछे डोलता रहता था. किसी न किसी काम के बहाने उससे बात करने की कोशिश करता रहता था. यदि उसे कुछ सामान की जरूरत होती तो मैं झट से आगे आ जाता था.
मैं देख रहा था कि वो भी मेरे सामने आते ही शरमाने लगती थी. उसकी नजर भी मुझ पर मोहित सी दिखाई दे रही थी.
कई बार मैं उसके सामने अपनी पैंट में अपने लंड को खुजला देता था.
वो मेरे इशारे समझने लगी थी. अब आगे बढ़ने का समय आ गया था. उस पर अपनी वासना का आक्रमण करना आवश्यक हो गया था अब.
इसके लिए मैंने पिकनिक जाने की योजना बनाई. उसके लिए एक मिनी बस बुक कर दी गयी. पिकनिक जाने के दिन हम सब लोग तैयार थे और फिर सारी तैयारी करके गाड़ी में बैठने लगे. मौका पाकर मैंने निशा बहू के कान में धीरे से कह दिया कि गाड़ी की पीछे वाली आखिरी सीट पर ही बैठे.
उसने वैसा ही किया. सब को बिठाने के बाद मैं सामान वगैरह सेट करवा कर मैं खुद भी पीछे की ओर चला गया.
मैं और निशा मतलब ससुर बहू अगल बगल में ही बैठे हुए थे. मैंने उसके शरीर से अपने शरीर को स्पर्श करना शुरू किया. उसने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. वो चुपचाप बैठी हुई थी.
मैं अपना पैर उसके कोमल पर पैर पर घिस रहा था. उसको थोड़ी बेचैनी होने लगी तो वो शरमा कर यहां वहां नजर दौड़ाने लगी. भले ही मैं अपनी ओर से आश्वस्त था कि निशा के मन में भी मेरे लिये आकर्षण है लेकिन उसके लिए यह सब हरकतें इतनी आसानी से स्वीकार करना सरल नहीं था क्योंकि वो थी तो एक स्त्री ही. इसलिए थोड़ी घबराहट हो रही थी उसे.
वो बार बार इधर उधर नजर दौड़ा कर ये सुनिश्चित कर रही थी कि कोई हम दोनों को ये हरकत करते हुए देख न रहा हो क्योंकि वो घर की इज्जत थी. उसके इस प्रयास से ये तो साफ हो गया था कि वो भी कुछ करना चाहती है.
फिर मैंने अपना हाथ उसकी जांघों पर रख दिया. उसने तब भी कोई आपत्ति नहीं की. वो खिड़की से बाहर देखती रही. इस मौके का मैंने फायदा उठाना चाहा. मेरे पास एक बैग था जिसको मैंने अपनी एक जांघ पर रख लिया. इससे हुआ यूं कि किसी को भी नीचे का कुछ दिख नहीं सकता था कि मेरा हाथ कहां रखा हुआ है.
अपने हाथ से मैंने निशा बहू की जांघ को सहलाना शुरू कर दिया. फिर आहिस्ता अहिस्ता से उसकी साड़ी को उसकी टांगों पर ऊपर की ओर खींच कर सरकाना शुरू कर दिया. मेरी नजर सामने सब लोगों को चेक कर रही थी और मेरा हाथ नीचे ही नीचे अपना काम कर रहा था.
धीरे-धीरे करते हुए मैंने उसकी साड़ी को उसकी जांघों तक ऊपर कर लिया. उसकी जांघें नंगी हो गयी थीं. मैंने धीरे-धीरे से उसकी नंगी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया. उसकी जांघें बहुत ही कोमल थीं. निशा की सांसें अब तेज होने लगी थीं.
वो गर्म होने लगी थी. मैंने गाड़ी में नजर घुमा कर देखा तो सब लोग अपने अपने में व्यस्त थे. कोई फोन में लगा हुआ था तो कोई खाने पीने में और बातें करने में मशगूल था.
फिर मैंने अपने हाथ को धीरे धीरे ऊपर ले जाना शुरू किया. अब मेरा हाथ निशा की कोमल जांघों से ऊपर होता हुआ उसकी चूत की ओर प्रस्थान कर गया था. धीरे धीरे निशा की चूत के करीब पहुंचता जा रहा था मेरा हाथ और इसी फीलिंग के कारण मेरे लंड का बुरा हाल हो चुका था.
मेरा लौड़ा मेरे पजामे में उछल कूद कर रहा था. किसी तरह से मैं अपने लंड को ढका रखने की कोशिश भी कर रहा था. पहुंचते पहुंचते आखिरकार मेरे हाथ निशा की जांघों पर फंसी चड्डी से जा टकराया. उसकी कोमल चूत से दूरी अब कुछ ही सेंटीमीटर की रह गयी थी.
मैंने थोड़ी और हिम्मत की और उसकी चड्डी को लांघ कर मेरा हाथ उसकी चूत को छू गया. उसकी कोमल सी चूत को छूते ही पूरे बदन में तूफान उठने लगा. अब मुझसे रुका नहीं जा सकता था और मैंने उसकी चूत को उसकी चड्डी के ऊपर से ही सहलाना शुरू कर दिया. निशा अब काफी गर्म हो चुकी थी.
कुछ ही देर के बाद निशा की चूत ने पानी छोड़ना शुरू कर दिया था जिसका गीलापन मुझे मेरी उंगलियों पर लग रहा था. अब मुझे उसकी चड्डी हम दोनों के मिलन में बहुत बड़ी अड़चन लगने लगी थी. मेरा हाथ उसकी चूत को चड्डी के नीचे से छूने के लिए बेताब था. मेरी हथेली उसकी चूत का स्पर्श पाने के लिए बेचैन थी. उसकी चूत में उंगली डालने का बहुत मन कर रहा था.
फिर मैंने आहिस्ता से उसकी चड्डी को एक तरफ कर दिया. उसकी चूत आसपास से गीली हो चुकी थी. मुझे बहुत ही मादक क्षण लगा ये जब मेरी उंगलियां उसकी चूत के पानी में भीग रही थीं. मैंने उसकी चूत को छेड़ा तो वो थोड़ी सी उचक गयी. उसकी चूचियां तेजी से हिल रही थीं क्योंकि उसकी सांसें बहुत तेजी से चल रही थीं.
मैंने उसकी चूत में उंगली दे दी और धीरे धीरे उसकी चूत में अंदर बाहर करने लगा. निशा आहिस्ता आहिस्ता से आवाजें करने लगी- अम्म . स्स . अम्म . कर रही थी वो. मगर आवाज काफी धीमी थी.
वो खुद को रोकने की कोशिश भी कर रही थी लेकिन उसकी चूत बहुत गर्म हो चुकी थी.
मैंने अब तेजी से उसकी चूत में उंगली अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.
उसका बदन तपने लगा और धीरे धीरे कांपने लगा. वो खुद को रोक नहीं पा रही थी. मैं तेजी से उंगली चला रहा था और वो मेरी जांघ पर अपने हाथ से दबाते हुए खुद को संभालने की कोशिश कर रही थी.
पांच मिनट हो चुकी थी उसकी चूत में उंगली चलते हुए. फिर उसका पूरा बदन एकदम से तेजी से कांपने लगा और उसकी चूत ने मेरे हाथ पर ढेर सारा पानी छोड़ दिया. मैंने फिर अपना हाथ बाहर निकाल लिया.
मेरे उंगलियां उसकी चूत के पानी से सराबोर हो गयी थीं. मैं अपने हाथ को सूंघने लगा. निशा की चूत की खुशबू हो गयी थी मेरे हाथ में. मैं निशा के सामने ही उसकी चूत की खुशबू लेने लगा और फिर मैंने अपनी उंगलियों को चाट लिया. ये देख कर वो शरमा गयी.
मैंने धीरे से उसके कान के पास अपना मुंह ले जाकर कहा- ये अमृत मुझे अब दोबारा कब मिलेगा?
वो बोली- जब आपका मन करे ले लेना.
बस, अब मेरा काम आधा बन चुका था और आधा ही बाकी रह गया था. उसकी चूत तक तो पहुंच गया था अब उसकी चूत में लंड देने का काम बाकी रह गया था. फिर हम पिकनिक वाली जगह पर पहुंच गये.
हम सब बस से उतर गये. उस दिन हम दोनों एक दूसरे को चोरी चोरी देख रहे थे. मैं भी निशा के बदन की गोलाइयों को नाप रहा था और वो भी मेरे बदन का नाप ले रही थी.
पूरा दिन घूमने के बाद हम लोग थक चुके थे. उसके बाद हम लोग वहां से वापसी के लिए निकल लिये. अब थकावट काफी हो चुकी थी. फिर हम घर पहुंच गये. सब लोग नहा धो लिये और आराम करने के लिए जाने लगे. उसके बाद शाम का खाना हुआ और सबने खाना खा लिया.
फिर सोने की तैयारी होने लगी. सब अपने अपने बिस्तर पर पहुंच गये. सब थके हुए थे इसलिए सबको जल्दी ही नींद भी आ गयी. सब लोग हॉलनुमा कमरे में ही पड़े हुए थे जो कि काफी बड़ा था. सब लोग खर्रांटे लेने लगे. मगर मेरा लंड मुझे सोने नहीं दे रहा था.
रात के 1.30 बजे का टाइम हो गया था और मैं बेचैनी में करवटें बदल रहा था. निशा की चूत के वो विचार मुझे लेटने नहीं दे रहे थे. मेरा लंड उछल उछल कर दर्द कर रहा था. फिर मैं उठ कर पेशाब करने के लिए जाने लगा.
मैंने चारों ओर नजर घुमा कर देखी तो सब लोग गहरी नींद में थे. मैं बाथरूम की ओर गया. जाते हुए मैंने निशा की ओर देखा. उसके अगल बगल में काफी जगह थी. सभी औरतें एक तरफ लेटी हुई थी.

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