डॉक्टर साहब की गांड मराने की तमन्ना

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“उई … बहुत मोटा है..!”
“क्या लग रही है? निकाल लूं?”
“नहीं डाले रहो … उसने सही कहा था.”
“किसने? क्या बात है?”
“तो शुरू करूं … परमीशन है?
“हां भाई साहब यह भी कोई पूछने की बात है. लंड डाले हुए दो-तीन मिनट हो गए … कब तक डाले रहोगे. वैसे भी सुना है कि आपको देर लगती है.”
उनकी गांड सुरसुराने लगी थी. उसमें हल्की हल्की हरकत होने लगी थी, जिसे महसूस करके मैं समझ गया था कि अब गांड में मजा आना शुरू हो गया है.
मैं हल्के हल्के धक्के देने लगा.
धच्च पच्च धच्च पच्च …
मैं बहुत धीरे धीरे कर रहा था. असल में मैं डॉक्टर साहब की पहली बार गांड मार रहा था, तो सावधानी जरूरी थी. मेरी भी फट रही थी कि गांड मरवाते में डॉक्टर साहब नाराज न हो जाएं.
चलिए मैं आपको पूरी बात बताता हूं. मेरी उम्र तब लगभग चौंतीस पैंतीस साल की रही होगी. मैं सरकारी नौकरी में था और थोड़ा अकड़ू मिजाज का था. आप इसे स्वाभिमानी मिजाज भी कह सकते हैं.
मैं किसी से रिक्वेस्ट या चमचागीरी नहीं कर पाता था. अतः दूर दूर फेंक दिया जाता था. वैसे तो मैं हर चार छह माह में घर आता रहता था, पर इस बार तीन चार साल बाद एक डेढ़ माह रूका था.
मेरा होम टाउन मध्यप्रदेश के ग्वालियर-चम्बल संभाग में एक तहसील स्तर का कस्बा है. यहीं से मैंने मैट्रिक इन्टर बारहवीं तक पढ़ाई की और गांड मराई का भी खूब मजा लिया. कुछ दोस्तों के साथ अटा सटा भी रहा. हमने एक दूसरे की गांड मारी. मैं एक गोरा चिकना लौंडा था. माशूकी की उम्र थी, गांड मराई ज्यादा हो चुकी थी. मेरे से बड़ी क्लास के दादा टाईप के दबंग लौंडे मेरी गांड कसके मारते थे. साले मेरी गांड रगड़ कर रख देते थे.
फिर मेरे क्लास फैलो भी मुझ पर मरते थे. मुझे उनकी भी दोस्ती निभानी पड़ती थी. मोहल्ले के अंकल टाइप के लोग भी नहीं छोड़ते थे. वे सब मेरी गांड मार कर निहाल हो जाते थे.
अपनी क्लास के ऐसे ही हम पांच-सात माशूक लौंडे थे, जिनकी गांड अधिकतर रगड़ी जाती थी.
ऐसे ही डॉक्टर साहब के बड़े भाई भी मेरे क्लास फैलो थे, वे भी तब मेरे जैसे ही माशूक थे. गांड मराने की उन्हें भी मेरी तरह ही आदत पड़ गई थी. वे एक समृद्ध घर के चिरंजीव थे. उनके पास उनका स्टडी रूम अलग से था. उनके आग्रह पर मैं उनके साथ पढ़ता था, वहीं रात में रूक भी जाता था. उधर मुझे उनकी इच्छा पूरी करना पड़ती थी.
एक दिन उनके घर में कोई नहीं था. मैं स्टडी रूम मैं अपने प्यारे नमकीन दोस्त के उसी के आग्रह पर उनकी गांड मार रहा था कि उनके चाचा आ गए. वे यही कोई बीस साल के होंगे, उन्हीं के साथ ये डॉक्टर साहब भी थे. तब ये मुझसे लगभग कुछ साल छोटे रहे होंगे. चाचा बड़ी देर तक हमारी गांड मराई देखते रहे. हम लोगों का ध्यान उन पर नहीं था. जब मैं झड़ा और लंड बाहर निकाला, तो चाचा जी कमरे में आ गए.
हम दोनों को थप्पड़ पड़े, डांट फटकार भी हुई. चाचाजी बड़बड़ा रहे थे कि साले अभी धरती से निकले नहीं … जरा सा लंड है … पानी तक नहीं छूटता होगा, पर पेलने में लगे हैं.
हालांकि उन्होंने किसी और से कुछ नहीं कहा. कुछ पिट पिटा कर खेल खत्म हुआ.
अब हम दोनों घर में सावधानी रखते. बाहर स्कूल के पास, तालाब के किनारे झाड़ियों में निपट लेते या उजाड़ मकबरे में गांड की प्यास बुझा लेते. ये आदत भी साली कहीं छूटती है.
आगे की बात सुनिए. अब मैं कोई चौंतीस-पैंतीस का होऊंगा, मैं हट्टा-कट्टा फिट बॉडी वाला एक गठीला वयस्क मर्द हो गया था. लोगों की दृष्टि मैं हैंडसम स्मार्ट मर्द हूं. अधिकतर दोस्त क्लासफैलो व सीनियर अलग अलग जॉब में बाहर निकल गए हैं. कुछ बिजनेस में हैं. किसी से मिलना ही नहीं हो पाता था.
एक दिन बाजार में डॉक्टर साहब का बोर्ड देखा. मेरे पेट में कुछ गड़बड़ थी, तो मैंने सोचा कि चलो डॉक्टर साहब से सलाह ले लेता हूँ. वे एक सरकारी मेडिकल ऑफीसर थे. शाम को क्लीनिक पर बैठते ही मैं अन्दर पहुंचा, तो देखा काफी भीड़ भाड़ थी. आठ दस मरीज बैठे थे.
उन्होंने मुझे देखा तो झट से पहचान लिया. उस समय लगभग सात-साढ़े सात का समय रहा होगा. मैंने डॉक्टर साहब को नमस्ते किया.
डॉक्टर साहब बोले- बैठ जाइए, आपसे अभी बात करेंगे.
लगभग आठ साढ़े आठ बजे सारे मरीज निपट गए. वे रिलैक्स होकर बैठे, स्टाफ को छुट्टी दे दी.
डॉक्टर साहब अपने स्टाफ से बोले- तुम लोग जाओ, मैं क्लीनिक बंद कर लूंगा.
उनकी बात सुनकर सब लोग चले गए.
डॉक्टर साहब ने पूछा- भाई साहब आजकल कहां हैं? इधर कब आए?
डॉक्टर साहब ने मुझसे शिकायत की कि मिलते ही नहीं हो.
फिर मैंने उनसे अपने मित्र के बारे में पूछा, तो डॉक्टर साहब ने बताया कि वे आर्मी में हैं, उनको छुट्टी कम मिलती है.
अब मैंने डॉक्टर साहब को ध्यान से देखा. वे इस समय मुझे खुद से काफी छोटे लग रहे थे. गेहुंए रंगत की रंगत, साढ़े पांच पौने छः फीट की लम्बाई. स्लिम स्मार्ट, कसे हुए बदन के मालिक डॉक्टर साहब, क्लीन शेव, चिकने चुपड़े आकर्षक व्यक्तित्व के थे.
उन्होंने मुझे उसी दिन की घटना याद दिलाई, जब हम चाचा जी के सामने पकड़े गए थे.
डॉक्टर साहब पूछने लगे- क्या अब भी शौक रखते हैं?
मैं चुप रहा, फिर मुस्करा दिया.
तो बोले- आदत कहां छूटती है.
ये कह कर डॉक्टर साहब हो हो करके हंसने लगे.
मैंने उनकी हंसी को दरकिनार किया और अपना दर्द उनसे बताया. मैंने कहा- पेट में गड़बड़ी है, कुछ दवा लिख दीजिएगा.
डॉक्टर साहब- आप डॉक्टर के पास आए हैं … तो चलिए देख लेते हैं.
वे मुझे बगल के रूम में ले गए. मुझसे डॉक्टर साहब ने एक बेड पर लेटने को कहा.
मैं लेटने लगा, तो बोले कि पेंट शर्ट उतार लो.
मैं थोड़ा झिझका, तो बोले- उतार लेंगे, तो ठीक से चैकअप कर लूंगा.
मैंने पेंट शर्ट उतार दिए व लेट गया. उन्होंने मेरी बनियान भी ऊपर कर दी. वे मेरे पेट को देखते रहे, हाथ फेरते रहे.
फिर पेट के निचले हिस्से (पेड़ू) को सहलाने लगे. डॉक्टर साहब ने दो तीन बार अंडरवियर के ऊपर से ही मेरे लंड को भी सहला दिया.
मैं पुराना लौंडेबाज था, उनकी इस हरकत से समझ गया. मैंने कहा- डॉक्टर साहब ठीक से पकड़ें.
उन्होंने झट से मेरी अंडरवियर में हाथ डाल दिया व लंड पकड़ कर बाहर निकाल लिया. वे मेरे लंड को हाथ से पकड़ कर ऐसे देखने लगे, जैसे नाड़ी चैक कर रहे हों.
मैंने कहा- ऐसे कब तक औजार पकड़े रहेंगे … कुछ खेल लीजिए.
मेरी बात पर डॉक्टर साहब मुस्कराए, लेकिन अब भी वो कुछ कह नहीं रहे थे.
मैंने कहा- मुँह में दे लें … तो कुछ सही चैकअप हो सकेगा.
मेरी बात से सहमत होकर डॉक्टर साहब वास्तव में लंड चूसने लगे. मैं भी अब उनके चूतड़ पेंट के ऊपर से ही सहलाने लगा.
मैंने कहा- आप भी कपड़े उतार लें.
उन्होंने झट से अपना पैंट उतार दिया. मैंने उनके अंडरवियर का इलास्टिक खींचा. अब उसका क्या काम रह गया था.
मेरी निगाह और चाहत समझ कर डॉक्टर साहब ने अंडरवियर उतार दिया. अब वे नंगे खड़े थे. उनके भारी चूतड़ चमक रहे थे.
उनको नंगा देख कर मैं उठ कर खड़ा हो गया. उनका लंड एकदम तना हुआ था. मैंने उनके लंड पर हाथ फेरा, एक दो बार लंड की मुट्ठी सी मारी, तो उन्होंने मेरा हाथ हटा दिया.
मैं समझ गया.
अब मैंने बेड का गद्दा खींच कर नीचे बिछाया. उस पर उन्हें लेटने का इशारा किया. वे तुरंत गांड मराने की पोजीशन में औंधे लेट गए. मैं उनके ऊपर घुटने मोड़ कर बैठ गया और थूक लगा कर लंड का सुपारा डॉक्टर साहब की गांड पर टिका दिया.
एक बार लंड के सुपारे को डॉक्टर साहब की गांड के छेद पर फेरा, तो उन्होंने अल्मारी की तरफ इशारा किया.
वहां उनकी अलमारी में ऑलिव ऑयल की शीशी रखी थी. मैं उठ कर तेल ले आया. शीशी का ढक्कन खोल कर मैंने तेल को अपने लंड पर चुपड़ा और तेल से भीगी उंगली उनकी गांड में डाल दी.
दो तीन बाद तेल से सनी उंगली डॉक्टर साहब की गांड में डाल कर घुमाई … अन्दर बाहर की, तो डॉक्टर साहब की गांड बिल्कुल ढीली हो गई.
वैसे भी उनकी गांड चुदाई को मचल रही थी. मैंने लंड का टोपा फिर से डॉक्टर साहब की गांड पर टिकाया और पेल दिया. अभी सुपारा ही अन्दर जा पाया था. उन्होंने थोड़ा “आ आ ई ई..” किया.
पहले तो डॉक्टर साहब गांड ढीली किए हुए थे, फिर दर्द के कारण थोड़ी टाईट कर ली.
फिर जब मैंने उनके चूतड़ सहलाए, मसले, उनका चुम्बन लिया और थोड़ी रिक्वेस्ट की कि गांड थोड़ी ढीली रखें.
डॉक्टर साहब मान गए.

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