“आह … इस्ससस … बस ना रे … और कितना अन्दर डालेगा? साले मेरी फट गयी ना … हाय साले फाड़ डाली … आज चार साल बाद मिली हूँ … तो चोद दे मनमाफिक.
रितिका आज फुल फॉर्म में थी. वो मेरे सामने नंगी पड़ी चुदवा रही थी. चार साल, पूरे चार साल बाद उसकी चुत मेरे लंड के नीचे आयी थी. रितिका मेरे कॉलेज के जमाने की गर्लफ्रेंड थी, जो चार साल पहले मुझसे बिछुड़ गयी थी. कॉलेज के जमाने में उसकी मैंने कम से कम सौ बार ली थी. एक ऐसी मस्त लड़की थी रितिका … जिसका हर अंग जैसे तराशा हुआ था. सेक्स की आग जैसे बदन को ढकने की बजाए उघाड़ने का काम कर रही थी.
एक बार मैंने उससे पूछा भी था कि इतना सेक्स तेरे में कैसे आया?
उसने बताया था कि मम्मी डैडी का सेक्स देखते देखते उसको भी सेक्स चढ़ जाता था. लेकिन जमाने के डर से सिर्फ उसने अपनी उंगलियों से ही काम चला लिया था.
वो मुझे कहने लगी- तुम पहली बार जब मिले, तो मुझे तुम में वो मर्द दिखा, जो मेरी सेक्स की इच्छा को पूरा कर सकता था. पहली बार जैसे तुमने मेरे होंठ छुए, तो मेरी फुद्दी गीली हो गयी थी. लेकिन तुमने सिर्फ मम्मे और चूतड़ों को दबाकर ही संतोष कर लिया था. मैं तुम्हारी इस हरकत से भिन्ना गयी थी. क्या तुम तब मुझे पेलना नहीं चाहते थे?
मैंने रितिका से कहा- ऐसी कोई बात नहीं थी यार, लेकिन जब पहली बार था न … एक डर सा मन में लगा रहता था कि अगर तुम चिल्ला दी, तो क्या होगा?
फिर उसने मुझसे पूछा- तुम्हारी मुझे पेलने की इच्छा कब हुई?
मैंने कहा- कई बार … लेकिन समय अच्छा नहीं था. पहली बार कॉलेज के ग्राउंड में जब तुम अपने मम्मे दबवा कर चूत में उंगली करवा रही थीं, तब मेरा मन तुमको चोदने का बहुत था.
“अरे तो चोदना था न तभी?”
“नहीं यार … वो साला प्यून दूर से हम दोनों को देख रहा था.”
“फिर?”
“तुम्हारे घर पर जब तुम्हारे मम्मी पापा बाहर गांव गए थे, तब पहली बार मैंने तुम्हारी चुत मारी थी … याद है न?”
“हां रे … क्या मस्त चुदाई की थी तुमने!”
“यार, तुमको याद है पहली बार तुम्हारी गांड में मेरा लंड भूल से चला गया था, तो तुम कैसे बेडरूम में नंगी नाची थीं?”
“साले बदमाश, पहली बार इतना दर्द हुआ था कि मैं सहन ही नहीं कर पायी थी. और साले तू तो उस वक्त बड़ा हंस रहा था.”
“हां यार … तुम कैसे गांड पकड़कर डांस कर रही थी, ये देखकर ही मुझे हंसी आ रही थी?”
“चल हट साले, तेरे लंड पर तो मैं उसी दिन से फ़िदा हो गई थी.”
कुछ इस तरह से सेक्सी बातें करते थे हम दोनों. चार साल पहले उसके पापा का ट्रांसफर दूसरे शहर में हुआ, तो हमारा संपर्क जैसे टूट ही गया था. बीच बीच में उसे मेरी याद आती, तो वो फोन करती थी.
चार दिन पहले जब उसकी कॉल मेरे मोबाइल पर आयी, तो मेरे लंड ने खुलकर सलामी दी. साली थी ही इतनी मस्तानी.
अरे हां … मेरा परिचय तो देना मैं भूल ही गया. मैं राकेश एक सेल एक्जिक्यूटिव हूँ. आगरा में रूम लेकर रहता हूँ. वैसे मेरा रूम मोहल्ले से थोड़ा अलग है … तो किसी से कोई ख़ास जान पहचान नहीं हो सकी थी.
मोहल्ले में एक आंटी हैं. मैंने उन्हें किसी काम वाली को भेजने को कहा था. उन्होंने उषा नाम की एक काम वाली को भेजा था. मैं अकेला ही रहता हूँ, तो रोज दिन में मिलना मुश्किल था. इसलिए ऊषा रविवार को मुझसे मिलने आई. उसे देखते ही मेरे लंड ने सलामी दे दी.
वाह, क्या कांटा माल था … एक नंबर की छमिया, भरे भरे मम्मे, गोल गोल चूतड़ आंखें जैसे बोल रही हों कि आओ मुझको चोद दो. एकदम चुदाई का आमंत्रण देने वाली नशीली आंखें थीं.
मैंने उससे बात की, तो उसने कहा- बरतन भांडे के मैं हजार रुपये लूंगी. बाकी कुछ करना है, तो उसके एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे.
मैंने एक आँख मूंदकर उसे पूछा- बाकी यानि?
मेरे ये सवाल पूछने पर वो बिदक गयी- ओ साहब … कुछ ऐसा वैसा न समझना … हां बता दिया.
“अरे मतलब झाड़ू पौंछा वगैरह करेगी ना?”
उसने कहा- हां उसके एक्स्ट्रा पैसे लगेंगे.
मैं बोला- ठीक है, कितने लेगी?
उसने एक उंगली दिखाई, मैं समझ गया कि उसकी क्या मंशा है, साली ने पहली उंगली के बजाए बीच की उंगली दिखाई थी. इसका मतलब मेरे जैसे खिलाड़ी को समझ नहीं आए, तो मैं खिलाड़ी कैसा?
दूसरे दिन सवेरे सवेरे वो काम करने आई तो लाल साड़ी और हरा ब्लाउज पहन कर गांड ठुमकाते हुए मेरे सामने काम करने लगी.
मैंने उससे पूछा- तेरा मरद क्या करता है?
तो उसने हंस कर कहा- कुछ नहीं.
मैं चक्कर खा गया- यानि?
ऊषा- साला दारू पीता है और रोज रात को मारता है?
यानि ये मेरे लायक माल था. अगर उसको एक रोने के लिए कन्धा मिले, तो ये माल सहज पट सकता था. लेकिन साली थी तीखी मिरची, हाथ ना आने वाली. मैंने भी ठान लिया था कि इसकी गांड और चुत एक बार तो लेनी ही है.
मैंने प्लान बनाया. उसके बाद जब जब वो आती, मैं उसको अंडरवियर में ही रिसीव करता और उसके सामने अपने लंड को खुजाता रहता.
वो तिरछी नजरों से मेरे लंड को हसरत भरी निगाहों से देखती रहती.
मैं इस बात को जानता था कि पट्ठी मेरा लंड देख रही है, मगर मैं भी ध्यान नहीं देता … क्योंकि मैं जानता था कि ये ज्यादा से ज्यादा दो चार दिन में मेरे नीचे सोएगी ही.
दो तीन दिन निकल जाने के बाद एक दिन वो सवेरे आयी, तो उसने सलवार कमीज पहनी थी. उसके मम्मों के उठानों को देखकर मेरा लंड ठुमके मारने लगा. आज इसका तिया-पांचा एक करना ही था.
वो काम करने लगी, तो मैंने उससे कहा कि मैं बाथरूम जा रहा हूँ, थोड़ा घर का ध्यान रखना. बाथरूम में जाते ही मैंने मेरे सारे कपड़े खोल दिए और नल चालू कर दिया.
मैं जानता था कि साली बाथरूम में पक्का झाँक रही होगी, तो मैंने मेरे लंड को साबुन लगाकर पूरा टाइट कर दिया.
अब वो पूरी गीली हो गयी होगी, ये भी मैं जानता था. अचानक मैंने बाथरूम का दरवाजा खोलकर उसे अन्दर खींच लिया. मेरे आकस्मिक हमले से वो मेरी बांहों में आकर समा गयी.
उसके गोल गोल मम्मे मेरी छाती में दब गए.
उसने कहा- बाबू छोड़ो मुझे … ये क्या कर रहे हो?
तो मैंने उससे कहा कि तुम छुपछुप कर क्या देख रही थी?
“नहीं … कुछ भी नहीं?”
“क्यों झूठ बोल रही हो? मेरे लंड पर तुम्हारी नजर थी. ये मुझे पता है.”
“हाय, यानि मैं देख रही हूँ, ये तुमको पता था?”
“हां मेरी जान …”
मैंने उसे जान कहा, तो वो पिघल गई- बाबू तुम तो छुपे रुस्तम निकले.
“और तुम छुपी आग.”
“क्या?”
“अब क्या … क्या?”
“हाय मेरे हाथ तो छोड़ो बाबू?”
“भागोगी तो नहीं?”
वो हंसकर बोली- भागना ही होता, तो मैं ऐसे छुप कर देखती ही क्यों?
“आज एक तैयारी करनी है?”
उसने पूछा- कौन सी बाबू?
मैंने कहा कि मेरी एक्स गर्लफ्रेंड आज मुझसे मिलने आ रही है, उसको क्या दूँ, ये समझ में नहीं आ रहा है.
उसने मेरा लंड हाथ में पकड़कर कहा- इसको पेश करो न साब.
“यार आज तो तुमको पेलना है, तू साली मिरची की तरह तीखी और मस्त है.”
“आज मेरी बहुत दिन की इच्छा पूरी तो कर ही दो बाबू.”
“क्या?”
“मेरी आप आज गांड मारो.”
“वाह, क्या बात कही तूने, आज तो लंड को दोनों खुराक मिलेंगी?”
“हां बाबू, वो सिन्हा साहब थे ना … वो मेरी गांड पर ही फिदा थे. उनकी बीवी गांड नहीं मराती थी, तो वो मेरे को गांड मरवाने का अलग पैसा देते थे. उनसे गांड मरवाने की आदत तो लग गयी, लेकिन मरद साला ढिल्ला है … चूत में ही बराबर नहीं करता, तो गांड क्या मारेगा.”
मैं- आज मैं तुम्हारी गांड ही मारना चाहूंगा.
उसने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और सलवार पैरों से निकाल दी. मैंने उसकी कमीज की बटनें खोल दीं, फिर उसके दोनों मम्मों को पीछे से रगड़ना शुरू कर दिया.
वो- आह … मस्त … ऐसे ही करो … तुम्हारा लंड मेरी गांड में घुस रहा है बाबू … वाह … कितना हार्ड है.
फुल सेक्सी सीन था आज मेरी भी एक इच्छा पूरी होने वाली थी. कई दिन से मैंने किसी की गांड नहीं मारी थी. आज सामने से ही ऑफर था, तो मैं क्यों पीछे हटता. आज तो ऊषा के दोनों छेद लेने की तमन्ना थी.
उषा ने कहा- आह बाबू … आज फाड़ ही दो गांड को … ऐसा समझो कि ये तुम्हारे लिए ही बनी है.
मैं- चल आज तेरी ही तमन्ना पूरी करता हूँ … और कुछ चाहिए तुमको?
ऊषा- हां बाबू अपनी गर्लफ्रेन्ड को तुम चोदते कैसे हो … वो देखना चाहती हूँ.
मैं- ठीक है मेरी जान … मेरी रंडी. आज वो भी सही. दोपहर को वो जब आएगी, तो उसके पहले मैं तुम्हें कॉल कर दूंगा और सामने का दरवाजा सिर्फ लगा के छोड़ दूंगा. तुम धीरे से अन्दर आना, तुम्हें पूरा सिनेमा दिख जाएगा.
फिर मैंने उसकी जो गांड मारी, जन्नत का मजा आ गया. क्या मखमली चीज थी साली मादरचोद … वाह मेरा लंड तो जैसे जन्नत का मजा ले रहा था.